अभिषेक शुक्ला शायरी
"है अब जो ख़ल्क में मजनू के नाम से मशहूर..
वो मेरी ज़ात से वहशत उधार ले गया है "
-अभिषेक शुक्ला
"बनाना पड़ता था अक्सर बिगाड़कर खुद को..
तो मैंने रख ही दिया तोड़-ताड़कर खुद को "
-अभिषेक शुक्ला
"आईना रखने का इलज़ाम भी आया हम पर..
जबकि हम लोग तो चेहरा नहीं रखने वाले "
-अभिषेक शुक्ला
"उससे कहना के धुंआ देखने लायक होगा..
आग पहने हुए जाऊँगा मैं पानी की तरफ "
-अभिषेक शुक्ला
"अपनी जैसी ही किसी शक्ल मैं ढालेंगे तुम्हे..
हम बिगड़ जाएंगे इतना की बना लेंगे तुम्हे..
जाने क्या कुछ हो छिपा तुममे मोहब्बत के सिवाह..
हम तसल्ली के लिए फिर से खंगालेंगे तुम्हे..
हमने सोचा है की इस बार जुनूं करते हुए..
खुद को इस तरह से खो देंगे की पा लेंगे तुम्हे..
मुझमे पैवस्त हो तुम यूँ की ज़माने वाले..
मेरी मिटटी से मेरे बाद निकालेंगे तुम्हे "
-अभिषेक शुक्ला
"बने बनाये हुए दुःख नहीं उठाता हू मैं..
जो दुःख उठाने हो पहले वो दुःख बनाता हू मैं "
-अभिषेक शुक्ला
"हमारा रिश्ता हमारी तरह अनोखा है..
वो खर्च करता है मुझको.. उसे कमाता हू मैं "
-अभिषेक शुक्ला