Shakeel Badayuni Shayari
नज़्म - निवाला
"माँ है रेशम के कारख़ाने में..
बाप मसरूफ सूती मील में है..
कोख से माँ की जबसे निकला है..
बच्चा खोली के काले तिल में है..
जब यहां से निकल के जाएगा..
कारखानों के काम आएगा..
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर..
भूख सरमाये की बढ़ाएगा..
हाथ सोने के फूल उगलेंगे..
जिस्म चांदी का धन लुटायेगा..
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रोशन..
खून इसका दीये जलाएगा..
ये जो नन्हा है भोला-भाला है..
सिर्फ सरमाये का निवाला है..
पूछती है ये इसकी खामोशी..
कोई मुझको बचाने वाला आएगा" ॥
-'अली सरदार जाफ़री'।
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